रुके नहीं झुके नहीं आगे बढ़े
निकल पड़ा राही जो रास्ते पर ,सत्य निष्ठा हेतु स्वयं मार्ग गढ़े ।
होता सच्चा वीर वही धरा पर ,
रुके नहीं झुके नहीं आगे बढ़े ।।
निष्ठा लगन परिश्रम के बल पे ,
निर्भीक होकर वह शीर्ष चढ़े ।
कर्मवान कभी सोचा भी नहीं ,
जब परिवार त्याग घर से कढ़े ।।
एक माॅं को त्याग चला वह ,
जब दूजी माॅं का था भाव पढ़े ।
दूजी माता भारत माता हेतु ,
रुके नहीं झुके नहीं आगे बढ़े ।।
एक मातृभक्ति त्यागा उसने ,
दूसरी मातृभक्ति को चला है ।
एक माता ने हमें जन्म दिया ,
दूजी माॅं हेतु ही बढ़ा पला है ।।
भारत हेतु है जन्म लिया वह ,
भारत हेतु ही वह पला बढ़ा ।
भारत हेतु ही हृष्ट-पुष्ट हुआ ,
भारत माता हेतु घर से कढ़ा ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )
बिहार ।
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