हर पल तजुर्बा ज़िन्दगी, हमको सिखाती है,
सुबह सो कर उठे, ख्वाबों की याद दिलाती है।जब सुबह से शाम तक, ठोकरें जग की मिली,
शाम ढले बिस्तर पर, जख्मों पर दवा लगाती है।
हमने सबको अपना समझा, प्यार सारा बाँटते,
कौन अपना कौन पराया, यह जिन्दगी बताती है।
होने लगे भाई भाई जुदा, जब अर्थ से रिश्ते जुड़े,
स्वार्थ प्रधान बनी दुनिया, यह भी समझाती है।
मानवता सर्वोच्च धर्म है, संस्कार जिसका आधार,
संस्कारों का पालन करना, जिन्दगी बताती है सार।
परहित में हो जीवन अपना, बस यही सपना सदा,
उपकार से सन्तोष मिलता, कहती जिन्दगी सर्वदा।
धर्म का संरक्षण करो, सभ्यता संस्कृति का पोषण,
ठोकरें भी मारती, समझाने को जिन्दगी यदा-कदा।
ज़िन्दगी सूरज के मानिंद, बस बढ़ना सिखाती है,
ज़िन्दगी भी बाँटती बस, ज्यों सूरज की उर्जा सदा।
डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
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