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अजब है आस्था तुम्हारी

अजब है आस्था तुम्हारी

कमल पाठक 
अजब है आस्था तुम्हारी
नदियों को गंदा करते हो
तालाब को भरवाते हो
फिर उस पर घर बनाते हो
और घर की छत पर कठौती रख
उसमें गंगा को बुलाते हो
अजब है आस्था तुम्हारी

सूर्य को देखना जरूरी क्या है
घड़ी देखकर अर्घ्य चढ़ाते हो
पूरे साल जहर घोलते हो नदियों में
एक दिन उस नदी में
दो बूंद दूध गिराते हो
अजब है आस्था तुम्हारी

चार दिन पूरी पवित्रता से बिताते हो
लहसुन प्याज से भी नाक भौं चढ़ाते हो
सप्तमी का अर्घ्य पूरा हुआ नहीं,
मांस की दुकान पर लाइन में लग जाते हो अजब है आस्था तुम्हारी
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