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हो सके तो सँभल कर चलिए

हो सके तो सँभल कर चलिए|

डॉ रामकृष्ण मिश्र
हो सके तो सँभल कर चलिए जरा फुटपाथ पर।
दुकानें भी लगी होंगी खुले में फुटपाथ पर ।।
सड़क तो जिंदादिलोंकी सवारी का मार्ग है।
रोजमर्रे की जरूरत बिछी है फुटपाथ पर।।
भले डंडा क्यों न खाना पड़े साहब का मगर।
जिंदगी अपनी जमी है बस इसी फुटपाथ पर।।
भाव- बट्टा, कमी -बेसी खूब होते हैं यहाँ।
माॅल के नखरे- नफासत नदारद फुटपाथ पर।।
नाई, मोची, मसाले, फल, चाट, गुपचुप मिठाई।
बड़े- छोटों के लिए कपडे़ सजे फुटपाथ पर।।
किताबें जो पुरानी हैं मिलेंगी कम दाम में।
कबाड़ी की जिंस पसरी मिलेंगी फुटपाथ पर
यही ं कोई भाग्य पढ़ता हुआ तोता मिलेगा।
हस्त रेखा बाँचता है ज्योतिषी फुटपाथ पर।।
ठगी के भी कई धंधे चलाए जाते यहाँ। 
तीनतसिया , जेबकतरे फुलते फुटपाथ पर।।
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