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हेमंत ऋतु चल रहा है।

हेमंत ऋतु चल रहा है।

मौसम बदल रहा है।।
बदलते मौसम में दुश्मन सेना,
घर बाहर छा रही है।
शरीर पर आक्रमण के लिए,
चारों तरफ भिन भिना रही है।।
हमलावर बहुत ही छोटे हैं।
जिन पर हमला हो रहा है,
वो लोग ताजे मोटे हैं।।
फिर भी वो भाग रहे हैं।
अपना हथियार लेकर घर में,
सभी जाग रहे हैं।।
हमलावर निहत्थे हैं।
परंतु उनके जत्थे हैं।।
वो खुन के प्यासे हैं।
हम छुप रहे हताशे हैं।।
हम भी अपने हथियार चला रहे हैं।
उनको रोकने का दम दिखा रहे हैं।।
हम काला हीट स्प्रे छिंटा रहे हैं।
हम आल आउट जला रहे हैं।।
हम परम पावर हर्बल अगरबत्ती,
जला कर उन्हें रोकना चाहते हैं।
फिर भी वे हमारे शरीर पर,
खुन के लिए चढ़ते आ रहे हैं।।
हम भाग कर मसहरी में,
छुप जा रहे हैं।
फिर भी उन हमलावरों से,
खुद को बचा नहीं पा रहे हैं।।
वो कहने को मच्छर हैं।
पर हमें हराने में सक्षम हैं।।
उनका दंश झेल नहीं पाते हैं।
हम शीघ्र ही रोगग्रस्त हो जाते हैं।।
मलेरिया, फैलेरिया, चिकनगुनिया,
डेंगू, जीका वायरस आदि,
अनेक बिमारियाँ इन मच्छरों,
के दंश की देन हैं।
इस छोटे से जीव से,
इतना बड़ा मनुष्य कितना बेचैन है।।
सरकारी मशीनरी भी,
दवाई छिंटा रही है।
फिर भी इनकी बाढ़ को,
रोकने नहीं पा रही है।।
इन हमलावर मच्छरों से बचने का,
खुद की सुरक्षा ही उपाय है।
ईश्वर से भी क्या शिकायत है,
वो हीं जानें,इनको पैदा करना,
उनका ये न्याय है या,अन्याय है।। 
 जय प्रकाश कुवंर
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