बाल दिवस
पूर्व में किये थे अच्छे कर्मतभी तो पाया मनुष्य जन्म।
क्या मनुष्य जन्म मिलना ही
इस दुनियाँ में काफी है ?
सोचो समझो और करो विचार
फिर निभाओं अपना दायित्व यार।
क्या हम दे पा रहे है
अपने बच्चों को अच्छे संस्कार।।
पेटकी भूख मासूम बच्चों से
क्या कुछ नहीं करवाती है।
जब खिलौनो से खेलने के दिन थे
तब उनसे खिलौने बिकवाती है।
मैदान में खेलने कूदने के दिनों में
उनसे मैदान साफ करवाती है।
स्वर्थी इंसान अपने सुख के लिए
मासूमो के बचपन को छीन लेती है।।
होना था शिक्षा के मंदिर में उन्हें
तब मंदिर के बाहर फूलमाला बेच रहा।
औरो की दुआओ के लिए खुदका
भविष्य ईश्वर के समाने मिटा रहा।
होनी थी जब किताबे हाथ में तब
भूख मिटाने के लिए किताबे बेच रहा।
और देश के निर्माताओं को सच का
दर्पण बिना शिक्षित होकर दिखा रहा।।
शर्म आती नहीं देशकी सरकार को
बालनिषेध कानून बनाना काफी हैं।
बच्चों को शिक्षित करने के लिए
भरपेट खाना के साथ शिक्षा दिलाये।
और बाल मजदूरी से उन्हें बचाये
और उनका बचपन उन्हें लौटाये।
और इस नेक काम में हम आप
मिलकर अपनी भूमिका निभाये।।
जय जिनेंद्र देव
संजय जैन “बीना” मुंबई
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