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बेरोजगारी के साथी

बेरोजगारी के साथी

ऋषि रंजन पाठक
तुम भी बेरोजगार हो, हम भी बेरोजगार हैं,
आओ मिलकर एक-दूजे का दर्द संवारते हैं।
जिन राहों पर चले, वहाँ मंज़िल नहीं मिली,
आओ उन्हीं राहों को हंसते-हंसते गुज़ारते हैं।
ख्वाबों का शहर हमसे दूर रह गया,
आओ सपनों के हिस्से फिर से बांटते हैं।
हाथों में हाथ लेकर चलें संग जीवन की राह,
तुम भी हो साथी, हम भी हैं तुम्हारे साथ।
हर कठिनाई का हल है दोस्ती और हौसला,
आओ बेरोजगारी में भी खुशियां तलाशते हैं।
तुम भी खोए ख्वाबों में, हम भी खोए ख्वाबों में,
आओ बैठें संग-संग, उम्मीदों के हिसाबों में।
जिंदगी की राहों में कांटे ही कांटे हैं,
मगर चलना तो है हमें, चाहे जितने अफसाने हैं।
सपनों की नींव पर नए इरादे रखते हैं,
तुम भी हंसो संग मेरे, हम भी मुस्कुराते हैं।
तुम्हारी आंखों में ख्वाब अधूरे, हमारी आंखों में भी,
चलो दोनों मिलकर बुनें, नई राह की तस्वीर कहीं।
उम्मीदों के दिए जलाएं, अंधेरों को मात दें,
तुम भी मुस्कुराओ संग, हम भी मुस्कुराएं साथ दें।
मुझे आज भी याद है की एक मित्र ने कहा था कि हम लोग दोनों बेरोजगार एक दूसरे से दुखम सुखम बतिया रहे हैं

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