जीवन में बैलेंस किधर है
नहीं इधर है नहीं उधर है ,देखते चाहे हम जिधर हैं ।
दिख न पाता निज कमाई ,
जीवन में बैलेंस किधर है ।।
जीवन बैलेंस न जीवन में ,
बैलेंस से व्यापार किया ।
व्यापार में हो गया घाटा ,
जीवन को ही उधार दिया ।।
जीवन है जीवन का ऋणी ,
उधार में यह उद्धार कहाॅं !
जीवन हुआ द्वेष से ग्रसित ,
हमें किसी से प्यार कहाॅं !!
आना अब धरा पर दुबारे ,
जीवन का ऋण चुकाने को ।
बना न मन गंगा सा निर्मल ,
तड़पते ही रहे पार जाने को ।।
बैलेंस होता जीवन में यदि ,
मिली होती जीवन से मुक्ति ।
फॅंसे पड़े माया मोह जाल में ,
चल नहीं पाती कोई युक्ति ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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