क्या करेगी एक दिवाली!
सच्चिदानन्द प्रेमीबारहमासा वर्ष कि जिसमें ग्यारह रात अमावस काली ,
ऐसे में आ एक वर्ष पर क्या करेगी एक दिवाली ?
स्नेह भरो चाहे भी जितना -
सब दिन दीप न जल पाएंगे
कालखंड थी झंझाओं में -
बझ-बझ जलते बुझ जाएंगे ।
जलने का इतिहास पुरातन -
कौन जला करता किसके हित
किंतु तिमिर उत्पीड़न जग में -सब अतीत है ख़ाली ख़ाली !
ऐसे में आ एक वर्ष पर
क्या करेगी एक दिवाली ?
आज दीवाली पर्व जहाँ पर
दीयो की पांती सजती थी,
घोर निशा घनघोर तिमिर में
खुशियों की वंशी बजती थीं,
संस्कृति का यह पर्व मनोरम-
वह भी क्षीण हुआ जाता है -
घर घर घूम रही दनुआ की -
चाची लेकर ख़ाली थाली !
ऐसे में आ एक वर्ष पर
क्या करेगी एक दिवाली ?
सूनी सूनी गलियों में अब
कहीं पटाखे मेल न खाते
मोह निशा की नीरवता में
संन्यासी भी रास रचाते ,
बदले देव ज्ञान भी बदला
मारकाट का भैरव गर्जन
जै काली कलकत्ता वाली ।
ऐसे में आ एक वर्ष पर क्
या करेंगी एक दिवाली?
इसीलिए मत बाहर झांको
अंदर से ही लड्ना होगा
क्रूर अमावस्या के घन पट पर
पूनम का घट धरना होगा ,
दीप जलाओ अंतर्मन में
रंध्र -रंध्र खिल जाए नूतन
दूर गगन से उतरे भू पर
ज्योतित नेह शिखा मतवाली ।
ऐसे में फिर एक वर्ष पर सार्थक होगी एक दीवाली ।
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