बचपन
बचपन का भी अपना जमाना था,उसमें सिर्फ खुशियों का खजाना था।
चाहत तो बहुत कुछ पाने की थी,
पर दिल तो सिर्फ तितली का दिवाना था।
ना तो खबर कुछ सुबह की थी,
ना ही शाम का कोई ठिकाना था।
दिन भर थककर पाठशाला से आना था,
फिर सहपाठियों संग खेलने भी जाना था।
गाय की अमृत तुल्य दूध हमें पीनी थी,
परियों की कहानी मां से हमें सुननी थी।
ना तो रोने की कोई वजह थी,
ना ही हंसने का कोई बहाना था।
क्यूं हो गए हम आज इतने बड़े,
इससे अच्छा तो बचपन का जमाना था।
(बाल दिवस पर विशेष)
सुरेन्द्र कुमार रंजन
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