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प्रायश्चित

प्रायश्चित

 अवध किशोर मिश्र 
बेटा एकलव्य!
पहचाना तुमने?
मैं तेरा गुरु.... आचार्य हूँ.
छोड़ आया साथ राजपुत्रों का
क्योंकि सत्ता उनसे है छिन गई
हर जगह' सुरक्षित' कर दिया गया
स्थान तुम्हारा-
वैसे आधुनिक ' सुवर्ण' (सुंदर रंग वाले)
तुम ही हो.. और
आ गए हम.. जगह पर तुम्हारी.
अंगूठा लिया था नहीं दान में तुम्हारा..
केवल मांगा था एक वचन
(कि..
'तुम युद्ध में कभी सामना नहीं
करोगे अर्जुन का ')
और तुमने कहा था-
('गुरुदेव! यह वचन आपका..
लगता है जैसे..
माँग लिया हो आपने अंगूठा मेरा' )
"जब अर्जुन को नहीं हराऊंगा तो विश्वजयी कैसे कह लाऊंगा? "
उसे ही ...आधुनिक समाज तोड़कों ने फैलाया कि....
मैंने दान में अंगूठा माँगा था तेरा.
आज तुम ले लो... काटकर हाथ मेरा
या.. मैं तेरे बदले तीर चला दूंगा
या... चाहो तो तुम बंदूक चलाना..
रख कंधे पर मेरे...
क्योंकि सत्ता अब ..
कौरव- पाण्डव की नहीं....
तुम हो प्रभु मेरे.... अन्नदाता मेरे..
और दास हूँ मैं तुम्हारा... साथ ही चाहता हूँ करना... प्रायश्चित अपनी भूल का..
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