तमिलनाडु की दुर्गा वेलु नचियार |
(३ जनवरी १७३०-२५ दिसंबर १७९६)
ऋचा श्रावणी
यह कहानी रानी वेलु नचियार की जिन्होंने स्वराज के लिए वीरगती को प्राप्त हुई।यह प्रथम वीरांगना थी जिन्होने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के विरुद्ध लड़ी थी।
रानी वेलू नचियार तमिलनाडु के शिवगंगई क्षेत्र की धरती पर जन्मीं और अंग्रेज़ों से युद्ध में जीतने वाली पहली रानी थी. उन्होंने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से काफ़ी पहले अंग्रेज़ों से लोहा लिया और उनको नाको चने चबवा दिए. तमिल उन्हें वीरमंगाई (बहादुर महिला) कहकर बुलाते
एक योद्धा रानी, एक वीर महिला सेनाध्यक्ष और 5000 की सेना – इन सभी ने एक साथ मिलकर अंग्रेज़ों के छक्के छुड़ा दिए थे! यह एक ऐतिहासिक घटना थी जिसमें भारत की न केवल पहली महिला योद्धा का उदय हुआ था बल्कि देश में आत्मघाती बम विस्फोट की पहली घटना भी घटित हुई थी।
18वीं शताब्दी के दौरान, वर्तमान तमिलनाडु में शिवगंगई रियासत में वेलु नचियार नाम की एक रानी रहती थीं। वेलु सेतुपति राजवंश के शाही दंपती की इकलौती पुत्री थीं और वे राज्य के उत्तराधिकारी के रूप में पली-बढ़ी थी। युद्ध कलाओं, घुड़सवारी और तीरंदाजी में प्रशिक्षित, वे फ़्रांसीसी, उर्दू और अंग्रेज़ी सहित कई भाषाओं में भी निपुण थीं।
16 साल की उम्र में रानी वेलु नचियार की शादी तमिलनाडु स्थित शिवगंगा के राजा मुत्थुवाणुगन्थापेरिया से हुई. दोनों की एक बेटी हुई जिसका नाम वेल्लाची रखा गया. 25 जून 1772 को शिवगंगा के सैनिकों को ब्रिटिश जनरल ने घेर लिया. नतीजा, दोनों के बीच युद्ध हुआ. इसे कलैयार कोली युद्ध के नाम से जाना गया. उस जंग में रानी वेलु के पति और कई सैनिक शहीद हो गए. हालात को देखते हुए रानी वेलु को अपना सामाज्य छोड़कर तमिलनाडु के डिंडीगुल जिले में जाकर रहना पड़ा.
वेलु के जीवन में दुखद मोड़ तब आया जब अंग्रेज़ों ने - आर्कोट के नवाब के पुत्र के नेतृत्व में - कलैयार कोइल युद्ध में उनके पति मुथु वदुगनाथ थेवर की हत्या कर दी। वेलु और उनकी पुत्री, वेल्लाची, को तब शिवगंगई से भागने के लिए मजबूर होना पड़ा। वेलु शिवगंगई से दूर डिंडिगुल पहुँचीं, जहाँ उन्होंने डिंडिगुल के तत्कालीन शासक गोपाल नायकर की शरण में आठ साल व्यतीत किए।
डिंडिगुल में ही उनकी मुलाकात, मैसूर के सुल्तान, हैदर अली से भी हुई, जिनसे उन्हें सहानुभूति मिली क्योंकि हैदर अली उनकी धाराप्रवाह उर्दू और बुद्धिमता से प्रभावित हो गए थे।
रानी ने मैसूर के सुल्तान हैदर अली से सहायता मांगी। शुरू में वह इंकार कर दिए परन्तु बाद में अपने ५००० सैनिक, धन,गोला बारूद और बंदूकों के साथ विदा किए। कोचीन के राजा मार्तंड वर्मा जी ने भी सहयोग दिया। कुछ अमीर व्यापारियों ने भी मदद दी। ८ वर्ष की योजना के बाद रानी ने ईस्ट इंडिया कंपनी के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया।
यद्यपि डिंडिगुल में शिवगंगा किले पर अंग्रेज़ों का पूरा नियंत्रण था, वेलु ने अपनी सेनाध्यक्ष कुयिली के साथ आत्मघाती हमले की योजना बनाई। योजना की सफलता के लिए, यह जानना महत्वपूर्ण था कि अंग्रेज़ों ने अपने हथियार और गोलाबारूद कहाँ संग्रह किए थे। अपने उत्कृष्ट गुप्त स्रोतों के साथ, वेलु ने गुप्तचरों को काम पर लगाया, जिन्होंने किले में शस्त्रागार कक्षों को खोज निकाला और, शीघ्र ही, योजना को क्रियान्वित करने का निर्णय ले लिया गया।
विजयदशमी के दिन, कुयिली और कुछ अन्य महिलाएँ किले की ओर निकल पड़ीं। इस युद्ध के दौरान उन्हें अंग्रेजी गोला बारूद कारखाने के बारे में पता चला और तब उनकी सेनापति ने अपने शरीर पर रुई और घी का लेप लगाया कुयिली के आदेश पर, महिलाओं ने उस पर घी डाला और उसमें पूरी तरह से सराबोर होने पर, कुयिली ने निडरतापूर्वक शस्त्रागार कक्ष में प्रवेश किया और स्वयं को आग लगा ली, जिसके कारण वहाँ रखा हुआ प्रत्येक हथियार नष्ट हो गया। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि कुयिली i पहली मानव बम थी पूरे विश्व में जिन्होंने अपना बलिदान इस प्रकार दिया। कुयिली के बलिदान के बाद, वेलु ने अपने साम्राज्य को अधिकार में लेने के उद्देश्य से किले पर आक्रमण कर दिया। वेलु ने न केवल अंग्रेज़ों से बल्कि आर्कोट के नवाब से भी निडर होकर और वीरतापूर्वक लड़ाई लड़ी और इस कारण उन्हें 'वीरमंगई', अर्थात ‘वीरांगाना’ की उपाधि से सम्मानित किया गया।
रानी की विजय हुई। इन्होंने प्रजा की भलाई और कुशल राजनीति से अपने अपने राज्य पर शासन किया। अंततः २५ दिसंबर सन् १७९६ को उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए। है वीरमंगई तुम्हें यह राष्ट्र नमन करता है।
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