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दूसरों के लिए जीता हूँ

दूसरों के लिए जीता हूँ

सुरेन्द्र रंजन नाम है मेरा जन सेवा है काम,
दीन-दुखियों की मदद करना बस मेरा है काम।
लाख खामियां है मुझमें पर दूसरों के लिए जीता हूं,
अपने तो अपने हुए नहीं गैरों के लिए मैं मरता हूं।


दूसरों की सुखों की खातिर मैं तो जीये जाता हूँ,
अपने गमों के आँसू को बरबस ही पीये जाता हूं।
त्याग स्वार्थ और हिंसा को मानवता के लिए जीता हूँ, परोपकार करके मैं एक अजीब-सा सुख पाता हूँ।


लेकिन जब देता कोई धोखा चुपके से रो लेता हूँ,
नहीं दिखाता दर्द अपना सब चुपके से सह लेता हूँ।
लोगों की दुष्टता का हंसकर जबाव मैं देता हूँ,
ज्यादा पाप बढ़ने पर गिन-गिन हिसाब मैं लेता हूं।

सुरेन्द्र कुमार रंजन
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