विजातीय विवाह
मार्कण्डेय शारदेय:
एक व्यक्ति ने पूछा कि मेरी सन्तान अपनी जाति में विवाह करेगी कि दूसरी जाति में?
ज्योतिष में इस प्रश्न का ग्रहाधारित उत्तर है, पर कहना इसलिए कठिन है कि ग्रहविशेष जातिविशेष का होकर भी स्वभाव एवं कार्यक्षेत्र का मुख्य संकेतक होता है।परन्तु, आज स्वभाव, रंग, कार्य एवं गुण; ये जातीय नहीं रहे।शिक्षक की पात्रता-परीक्षा में जो उत्तीर्ण हो, वह शिक्षक हो जाए, सैन्यक्षेत्र, व्यवसायक्षेत्र व आदेशपाल की प्रतियोगिता में जो सफल हो, वह उक्त अर्हता में नियुक्त हो जाए।फिर, वर्गविभाजन और कार्यविभाजन में साम्य कैसे सम्भव है?
आज की युवा पीढ़ी विजातीय विवाह की ओर बढ़ रही है।हाँ; अभी भी प्रतिशत में कम ही है, पर लगता है कि दो से पाँच दशक होते-होते प्रतिशत में ऊँचाई चूम लेगी।
सच पूछा जाए तो यह विजातीय है भी नहीं।हमारे यहाँ जातियाँ आचार से पहचानी जाती थीं।अब सबका खान-पान, रहन-सहन, वेष-भूषा, शिक्षण-प्रशिक्षण, कार्य-व्यवसाय समान है तो जातिभेद कहाँ? कैसे कोई किसी को जातिविशेष से पहचान सकता है? थोड़ी-बहुत भिन्नता बची है तो मात्र निर्धन-अशिक्षित व अर्धशिक्षित समाज में।यह दूरी भी कम होकर ही रहेगी।जब "आचारमूला जातिः" मृतप्राय है तो कैसे कोई स्वयं को जातिविशेष का कह सकता है?
जब कोई कहे कि मैं अमुक जाति का हूँ, क्योंकि मेरे पिता, पितामह आदि उसी जाति के रहे।उन्हीं का वंशज व खून हूँ तो यह भी दूसरा यह भी तो कह सकता है कि कितनी पीढ़ी तक चलेंगे? अन्त में ब्रह्मा व मनु-शतरूपा तक जाएँगे तो सबका मूल एक ही होगा न! स्पष्ट है कि बाद में कार्याधारित वर्णविभाजन हुआ।आज भी हम अपनी जड की ओर जा रहे हैं।इसीलिए सब लोग सब तरह के काम करने लगे हैं, सब अपनी पहचान खोते जा रहे हैं।हाँ; आज नई जाति विकसित हो रही है, जो पूर्णतः कर्माधारित है।इसी कारण नई पीढ़ी प्राचीन व रूढ़िगत जाति से भिन्न समान कार्यक्षेत्रीय जीवनसंगी का चयन करने में बढ़ रही है।
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