कर्म का एहसास कर
न दूर कर न पास कर ,न शक्ति का ह्रास कर ,
मानव हो मानव प्यारे ,
कर्म का एहसास कर ।
नहीं तुम उपहास कर ,
नहीं तुम परिहास कर ,
विश्व के कल्याण हेतु ,
एक दिन उपवास कर ।
न किसी का आस कर ,
किंतु सबको खास कर ,
सब में तुम्हीं वास कर ,
न जीवन तू उदास कर ।
नहीं तुम आकाश भर ,
नहीं तुम अवकाश भर ,
नहीं भूत भविष्य से डर ,
वर्तमान ये आभास कर ।
तुम नारी हो या हो नर ,
कर्म कर न दुष्कर्म कर ,
शीतल छाया तू बन जा ,
निज जीवन तू नर्म कर ।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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