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महबूबा

महबूबा

किस सोंच में डूबी हो महबूबा मेरी,
किस बात पर खफा हो माशूका मेरी।
अब बता भी तो दो क्या खता है मेरी,
जान हूँ मैं तेरा तू मृत संजीवनी मेरी।
तेरी हर एक अदा का दिवाना हूँ मैं,
ना आवारा समझ तेरा परवाना हूं मैं।
तेरी मस्त निगाहों से घायल हूं मैं,
तेरी खूबसूरती से घायल हूं मैं।
इस कदर तू ना रूठो मेरी गुलबदन,
मन बेचैन है जल रहा तन-बदन ।
क्यों अड़ी है तू जिद्द पर मेरी जानेमन,
तू मेरी दिलरुबा मैं तेरा प्यारा सजन।

सुरेन्द्र कुमार रंजन
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