Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

बचपन के दिन

बचपन के दिन

बचपन के दिन भी क्या दिन थे,
उड़ते फिरते तितली बन, ओ बचपन ।
फूलों में खेलते, चिड़ियों से दोस्ती,
बेफिक्र मन, हँसी के फव्वारे।

खेतों में दौड़ते, बादलों को छूते,
कल्पनाओं के पंख फैलाए,
नदी के किनारे बैठकर, कहानियां सुनते,
माँ की गोद में सिर रखकर, सो जाते।

गुड़िया और लकड़ी के घोड़े साथी,
बचपन के खेलों में मस्ती,
कितनी मासूम थीं हमारी बातें,
कितनी प्यारी थीं हमारी मुस्कानें।
अब वो दिन लौट कर नहीं आएंगे,
यादें सिर्फ दिल में बसाएंगे,
बचपन के दिनों को याद करते हैं,
आँखों में आंसू, दिल में गीत गुनगुनाते हैं।
आज का युग डिजिटल युग है। बच्चे अब टीवी, प्ले स्टेशन, लैपटॉप और मोबाइल के साथ इतने अधिक जुड़ गए हैं कि वे प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं। बचपन की वो निश्छलता, सहजता और मासूमियत जो कभी खेतों में दौड़ते, नदियों में छलांग लगाते और पेड़ों पर चढ़ते हुए दिखती थी, आज कहीं खो सी गई है।

आज के समय में बच्चों को प्रकृति से जोड़ना और उन्हें रिश्तों का महत्व समझाना बहुत जरूरी है। हमें उन्हें यह बताना होगा कि प्रकृति ही जीवन का आधार है और रिश्ते ही हमें खुश रखते हैं। हमें बच्चों को किताबें पढ़ने, खेलने-कूदने और प्रकृति के करीब लाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।

हमारी यह कविता हमें एक सन्देश देती है कि हमें अपने बच्चों को एक ऐसा वातावरण देना चाहिए जहां वे स्वतंत्र रूप से खेल सकें, सीख सकें और बढ़ सकें। हमें उन्हें प्रकृति के करीब लाना चाहिए ताकि वे प्रकृति का महत्व समझ सकें। आइए हम सभी मिलकर बच्चों के बचपन को खूबसूरत बनाएं।
स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
"कमल की कलम से"
(शब्दों की अस्मिता का अनुष्ठान)
14 नवंबर सन् 2024
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ