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जो निन्द्य है निकृष्ट का सम्मान हो रहा।

जो निन्द्य है निकृष्ट का सम्मान हो रहा।

डॉ रामकृष्ण मिश्र
जो निन्द्य है निकृष्ट का सम्मान हो रहा।
अब पूज्य, कर्मनिष्ठ का अपमान हो रहा।।
लगता है सोच की नयी सीमा गढी़ गयी।
अग्राह्य तंत्र- यंत्र का‌ आधान हो रहा।।
गम्भीरता ,आदर्श, प्रेम रुग्ण- से हुए।
स्नेहाभिराम सत्य‌ में व्यवधान हो रहा।।
करुणा, दया, सहानुभूति क्षीण हो रही।
सम्बन्ध छल- प्रपंच का मकान हो रहा ।।
ऊँची हुई इमारतें खाई हुए स्वभाव।
अब रोग के विरुद्ध सब निदान हो रहा ।।
संवेदना कहाँ गयी कोई न जानता ।। 
जो त्याज्य था वह जरूरी सामान हो रहा।।
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