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आती है तेरी स्मृति चुपके से |

आती है  तेरी स्मृति  चुपके से |

डॉ रामकृष्ण मिश्र
आती है  तेरी स्मृति  चुपके से को मन  सहला जाती। 
खिल जाते रोमांच भाव ,चुपके- चुपके बहला जाती।। 

यहाँ न कोई चंपा बेला, गमले की सौगन्ध कहूँ
बहुत पुरानी बातों को अधुनातन क्यों अनुबंध कहूँ। 
तलछट की घबराहट सी साँसों को भी दहला जाती।। 

बाल रात्रि युवती बन बैठी और ओढ़ने लगी सुबह
किरणों की धारा उदयाचल से अब होने  लगी प्रवह। 
दूर कहीं चकवे  की  बरबस बेचैनी बतला जाती।। 

पाखी के चहकन में  गुंफित एक टेर का मौसम सा
अन्तर्तम में लगी जगाने  विचलित रसमय माजुम सा। 
आश्वासन  की वैध चासनी सी आभा दिखला जाती  ।। 
रामकृष्ण
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