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मैं जिया करूॅं तुझे जिन्दगी

मैं जिया करूॅं तुझे जिन्दगी ,

मुझे भी तू जिन्दगी जीने दे ।
जी लेने दे मुझे भी जिन्दगी ,
जीवन का रस मुझे पीने दे ।।
अभी आरंभ हुआ है जीवन ,
मुझे जीवन को तो सीने दे ।
जीवन तो दिया है सृष्टि यह ,
तू मुझे जीवन के नगीने दे ।।
तन से निकले मन के कचड़े ,
तन में इतने मुझे पसीने दे ।
होऊॅं शहीद रण में लड़कर ,
छत्तीस इंच चौड़ा सीने दे ।।
पल भर में अरि ठंढा करूॅं ,
मस्तिष्क मेरे वही मशीनें दे ।
मैं जिया करूॅं तुझे जिन्दगी ,
मुझे भी जीवन तू जीने दे ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
बिहार ।

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