दीपावली का दिन
जग मग जग मग ज्योत जलेचारो तरफ प्रकाश फैले।
देख के दृश्य ये मन मेरा
अंदर अंदर खुश होवे।
जग मग जग मग ज्योत जले....।।
दिल पर पड़े जब कोई छाया
अंदर से तब वो मचलने उठे।
और डूबने लगे फिर ख्यावों में
सपने जिस संग देख रहा।
अपनी दुनियाँ अपने ख्याव
जी रहा हूँ इसमें ही आज।
क्या कोई कर सकता मेरा
मेरी जिंदगी मेरा सबेरा।।
जग मग जग मग ज्योत जले....।।
धुनी रमा के बैठे है
और प्यार की बंशी बाजा रहे।
मन कोमल और आँखे गीली
जो दीप प्यार का जला रही।
तब चंचल मन भी मेरा
भटक रहा प्यार के सागर में।
और नाप रहा कल्पनाओं में
इस प्यार भरे सागर को।।
जग मग जग मग ज्योत जले....।।
जीना लगता है अब बेकार
सच में उनके जाने के बाद।
जब वो होती थी आसपास
तो दिल खिल उठता था ।
पर अब न दिल खिलता है
और न मन मचलता है।
बस अपनी बारी आने का
अब कर रहा इंतजार।।
जग मग जग मग ज्योत जले....।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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