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अमर कर दो

अमर कर दो

खुशी की उम्मीदें लेकर
चले थे सेर करने को।
चिरागे दिलमें मोहब्बत के
जलाने को हम निकले।
अगर मोहब्बत सच्ची है
तो चिराग जल उठेगें।
मोहब्बत के दीपक फिर
दिल में जल उठेगें।।

तजुर्बा अब तक का मेरा
कहता है कुछ नया नया।
जो दिलमें बसते है लम्हें
खुशी उनसे मिलती है।
तमन्नाएँ है जो दिल में
उन्हें तुम पूरा कर लो।
बुझा दो आग दिलकी तुम
मिलकर अपने मेहबूब से।।

कभी खाई थी कसम
तुम्हें बहुत प्यार करेंगे।
अपने दिल के अंदर
तुम्हें हम बैठा के रहेंगे।
मिला है अब जो मौका
उसे तुम पूरा कर लो।
मोहब्बत तुम अपनी अब
जामाने में अमर कर दो।।

जय जिनेंद्र

संजय जैन "बीना" मुंबई

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