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कलम का हर छोर, लोक रंग से सराबोर

(हिंदी और राजस्थानी भाषा के सुप्रसिद्ध कवि व साहित्यकार स्व. कन्हैया लाल सहल(नवलगढ़ )की जयंती पर कुछ पंक्तियां सादर निवेदित हैं: __)

कलम का हर छोर, लोक रंग से सराबोर

राजस्थानी साहित्य परम साधक,
लेखनी अंतर जनमानस बिंब ।
सूक्ष्म शोध दैनिक जीवन शैली,
सृजन पथ सरस कलिंग ।
प्रखर स्वर निज संस्कृति,
राजस्थानी भाषा स्वर्णिम भोर ।
कलम का हर छोर, लोक रंग से सराबोर ।।


काव्य अनुपमा आनंद परिपूर्ण,
विज्ञता लोकोक्ति भव्य पटल ।
कहावतें सेतु साहित्य वाचस्पति,
जन झंकार अभिरक्षा अटल ।
शीर्ष उद्धारक सांस्कृतिक विरासत,
लेखन मनोरमा यथार्थ ओर।
कलम का हर छोर, लोक रंग से सराबोर ।।


शब्द अर्थ भाव प्रेरक,
आलेखन बिंदु भागीरथी ।
स्पंदन लोक चैतन्यता,
ओज विहंगम सम रश्मिरथी ।
निर्वाहक लेखन नैतिक धर्म,
निशि दिन अथक प्रयास पुरजोर ।
कलम का हर छोर, लोक रंग से सराबोर ।।


व्यक्तित्व कृतित्व प्रेरणा पुंज,
मृदुल मधुर सौम्य व्यवहार ।
गगन धरा स्वभाव मिश्रण,
निष्ट शिष्ट कर्तव्य बहार ।
अनंत नमन अवतरण बेला,
कामना सुखद अलौकिक ठोर ।
कलम का हर छोर, लोक रंग से सराबोर ।।


कुमार महेंद्र


(स्वरचित मौलिक रचना)
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