अस्ताचलगामी सूर्य को दिया गया अर्घ्य
दिव्य रश्मि के उपसम्पादक जितेन्द्र कुमार सिन्हा की कलम से |छठ पूजा चार दिवसीय व्रत होता है। इस पूजा में सबसे पहले नहाय खाय, दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन अस्ताचलगामी सूर्य को अर्द्ध तथा चौथे और अंतिम दिन उदयगामी (उगते सूर्य) को अर्द्ध दिया जाता है।
छठ पूजा में प्रत्यक्ष रुप से सूर्य को देखकर पूजा किया जाता है। यह पूजा जाति समुदाय से परे होते हैं और केवल लोक गीत गाय जाते हैं। छठ पर्व में पूजा के लिए पकवान लोग अपने घर पर बनाये जाते हैं।
दुनियां कहती है कि जिसका उदय होता है उसका अस्त निश्चित है। लेकिन सूर्य की छठ महापर्व यह संदेश देता है कि जो अस्त (डूबता) होता है, उसका उदय भी निश्चित होता है।
छठ पर्व सामाजिक सौहार्द, सद्भाव, शांति, समृद्धि और सादगी के महापर्व है। प्राचीन हिन्दू वैदिक त्योहार विशेष रूप से बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, झारखंड और नेपाल राज्यों के माघई लोगों, मैथिल और भोजपुरी लोगों द्वारा मनाया जाता है।
छठ पर्व के तीसरे दिन वृहस्पतिवार को अस्तगामी (डूबते) सूर्य को पहला अर्घ्य व्रतधारी ने दिया। विश्व प्रसिद्ध सूर्य देव की आराधना तथा संतान के सुखी जीवन की कामना के लिए समर्पित छठ पूजा का पहला अर्द्ध सेआज सम्पन्न हो गया।
चार दिवसीय छठ पूजा 05 नवम्बर को पहला दिन नहाय-खाय, 06 नवम्बर को दूसरा दिन लोहंडा यानि खरना, 07 नवम्बर को अस्तलगामी (सन्ध्या) अर्घ्य और 08 नवम्बर को चौथा दिन उदयगामी/सूर्योदय (सुबह) अर्घ्य, पारण के साथ सम्पन्न होगा।
सभी छठव्रती वृहस्पतिवार 07 नवम्बर को अस्तलगामी अर्घ्य देने से पहले बांस की टोकरी को फलों, ठेकुआ, चावल के लड्डू और पूजा के अन्य सामग्रियो से सजाकर गंगा नदी, तलाब, पोखर इत्यादि जगहों पर जहां अर्ध्य देने की व्यवस्था की गई है वहाँ पहुंचकर अस्तलगामी अर्ध्य अर्पित किया गया।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सायंकाल में सूर्य अपनी पत्नी प्रत्यूषा के साथ रहते हैं, इसलिए छठ पूजा में शाम के समय सूर्य की अंतिम किरण प्रत्यूषा को अर्घ्य देकर उनकी उपासना की जाती है।
ज्योतिषियों के अनुसार ढलते सूर्य को अर्घ्य देने से कई मुसीबतों से छुटकारा मिलती है और सेहत से जुड़ी भी कई समस्याएं दूर होती है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण के मुताबिक ढलते सूर्य को अर्घ्य देने से आंखों की रोशनी बढ़ती है।
पटना में अधिकांश लोग अपने- अपने घरों में छत पर भगवान भास्कर को अस्तलगामी अर्ध्य अर्पित किया।
पटना के अनीसाबाद स्थित मित्रमंडल कॉलोनी की रहने वाली स्मृति राखी ने बताया कि छत पर छठ व्रत करने से बूढ़े बुजुर्ग लोग भी शामिल होते है तो बहुत अच्छा लगता है, इसलिए मैं घर पर ही छठ व्रत करती हूं।
बिहार सरकार के न्यायिक अभिलेखागार में काम करने वाली और साकेत विहार कॉलोनी में रहने वाली कृति सिन्हा ने बताया कि घर पर छठ व्रत करने से अगल बगल में रहने वाले जो गंगाजी या किसी तालाब पर नहीं जा सकते हैं वे लोग बहुत ही उत्साह के साथ शामिल होते हैं और छठ पूजा की पवित्रता में कोई त्रुटि न हो इसका भी ध्यान रखते हैं, इसलिए मैं घर पर ही छठ व्रत करती हूं।
एजी कॉलोनी के रहने वाले पंकज कुमार और फ्रेंड्स कॉलोनी निवासी अर्चना सिन्हा ने बताया कि सहूलियत को ध्यान में रखते हुए हमलोग अपने घर के छत पर ही अस्तगामी और उदयगामी सूर्य को अर्द्ध देते हैं, जिससे हमें संतुष्टि मिलती है।
सर्वोदय नगर के अनिल कुमार और सुनिल कुमार ने बताया कि बहुत दिनों से हमारे यहां छत पर ही अर्द्ध दिया जाता है, इसलिए इसे अब हमलोग एक परम्परा के रूप में करते जा रहे हैं।
गोला रोड निवासी पुष्पलता सिन्हा उर्फ बेबी ने सूर्य देवता की चर्चा करते हुए बताया कि अर्द्ध कहीं भी दिया जाय, मेरी नजर में यह मायने नहीं रखता है, बल्कि स्वच्छता, श्रद्धा, निष्ठा और पवित्रता के साथ पूजा होनी चाहिए।
कंकड़बाग के सरकारी अधिवक्ता वीणा जायसवाल ने बताया कि मैं चैती और कार्तिक दोनों छठ पूजा विगत कई वर्षों से लगातार कर रही हूं और अपने छत पर ही करती हूं।
छठ व्रत घर के छत पर हो या तालाव पर या गंगाजी के तट पर, लेकिन पवित्रता, श्रद्धा, लगन और निष्ठा में कोई कमी नहीं होता है और उत्साह के साथ किया जाता है।
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