एक लड़की,रजनीगंधा सी
मस्त मलंग हाव भाव,तन मन अति सुडौल ।
अल्हड़ता व्यवहार अंतर,
मधुर मृदुल प्रियल बोल।
अधुना शैली परिधान संग,
चारुता चंचल चंदा सी ।
एक लड़की,रजनीगंधा सी ।।
अंग प्रत्यंग चहक महक ,
नव यौवन उत्तम उभार ।
आचार विचार मर्यादामय ,
अंतःकरण शोभित संस्कार ।
ज्ञान ध्यान निज सामर्थ्य ,
हौसली उड़ान नंदा सी ।
एक लड़की,रजनीगंधा सी ।।
चाह अग्र कदम हर क्षेत्र ,
मिटा पुरात्तन सोच आरेख ।
ललक झलक प्रगति पथ,
प्रेरणा आत्मसात मीन मेख ।
तज अंध विश्वास कुरीतियां,
उर भावना पूज्या वृंदा सी ।
एक लड़की,रजनीगंधा सी ।।
सहन समाज व्यंग्य बाण ,
लैंगिक कटाक्ष अनंत वहन ।
पग पग पहरा शील चरित्र ,
स्वतंत्रता बिंदु मनन गहन ।
अहम भूमिका परिवार राष्ट्र,
निर्मल पुनीत पावन गंगा सी ।
एक लड़की,रजनीगंधा सी ।।
कुमार महेंद्र
(स्वरचित मौलिक रचना)
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