Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

संसर्ग के अभिलाष में, नेह का स्खलन

संसर्ग के अभिलाष में, नेह का स्खलन

सृष्टि चक्र शाश्वत नियम,
विपरितता सहज आकर्षण ।
जन्य आंगिक उत्तेजना,
गमन पथ मृदुल घर्षण ।
क्षणिक सुख पराकाष्ठा,
चरम बिंदु दैहिक मिलन ।
संसर्ग के अभिलाष में,नेह का स्खलन ।।


नेह भाष अभिलाष,
आत्मिक बिंब स्पंदन ।
काय सुगंधि मलयज सम,
आत्मसातता हिय मंडन ।
संयत ओज वेगना ,
आनंद ज्योत प्रज्वलन ।
संसर्ग के अभिलाष में,नेह का स्खलन।।


अद्यतन युग सर्व परिवेश,
तमो रजो आधिक्य ओतप्रोत ।
अंध भौतिक चकाचौंध कारण,
प्रायः विलुप्त सतो उद्गम श्रोत।
स्नेह प्रेम वास सतोस्थल,
प्रतिरूप छवि भ्रम वलन ।
संसर्ग के अभिलाष में,नेह का स्खलन ।।


आनन नयनन शब्द स्वर ,
उभार चाल ढाल आवेश ।
आमंत्रण निमंत्रण तृप्ति,
आलिंगन वासना भावेश ।
अवसान नैसर्गिक पर्याय,
अंत अशेष जलन गलन फलन ।
संसर्ग के अभिलाष में,नेह का स्खलन ।।


कुमार महेंद्र
(स्वरचित मौलिक रचना )


हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ