ख़्वाहिशें
मैंने माँगा था कि बरसात न हो, फिर भी ये बरसाक्या करूँ, ये दिल तो बेताब है, बेचैन है, बेसा
गर नहीं होती मेरे सहराओं पर बारिश, न हो
लेकिन इतना हो कि फिर फूलों की फ़रमाइश न हो
इतने भी उदास नहीं हैं हम कि कर लें ख़ुदकुशी
और न इतने ख़ुश कि सच में मरने की ख़्वाहिश न हो
आँखों में नींद नहीं, दिल में कोई आस नहीं
जैसे कोई खाली सा मकान, जिसमें सुकून ना हो
कभी हँसते हैं, कभी रोते हैं, कभी डरते हैं
ये ज़िंदगी क्या है, ये सवाल का कोई जवाब ना हो
कभी हँसते हैं, कभी रोते हैं, कभी डरते हैं
ये ज़िंदगी क्या है, ये सवाल का कोई जवाब ना हो
मैंने देखा है कि फूल भी मुरझा जाते हैं
और ये हवाएँ भी कभी रुकती नहीं हैं
कभी लगता है कि ज़िंदगी बहुत ही खूबसूरत है
कभी लगता है कि ये सब कुछ बेकार है
शायद यही है ज़िंदगी, एक सफ़र, एक सफर
जहाँ कभी खुशी मिलती है, कभी ग़म
मैंने माँगा था कि बरसात न हो, फिर भी ये बरसा
क्या करूँ, ये दिल तो बेताब है, बेचैन है, बेसा
. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
"कमल की कलम से" (शब्दों की अस्मिता का अनुष्ठान)
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