अभी हुस्न की नुमाइश,
अलग अलग अंदाज में करने में,खुब मजा आ रहा है।
पर पता नहीं तुम्हें,
यह चमकता दमकता हुस्न,
धीरे धीरे खंडहर होता जा रहा है।।
समय दूर नहीं जब,
इस इमारत का प्लास्टर,
झड़कर खत्म हो जाएगा।
इसके एक एक ईंट,
और खुली हुई दरारें,
सबको दूर से नजर आएगा।।
प्लास्टर चढ़ाना भी,
तब बेकार साबित होगा।
रंग रोगन से भी तब,
वह चमक नहीं लौटेगा।।
जीवन की कुछ सच्चाईयां,
स्वीकार करने में ही भला है।
हद में रहना ही अच्छा लगता है,
जब तक उम्र नहीं ढला है।।
जय प्रकाश कुवंर
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