अन्तस की अभिव्यक्ति....
प्रियंका रायऔरों का मन पढ़ते-पढ़ते अपना ही मन भूल गए
सच बोलूं तो बचपन में ही अपना बचपन भूल गए
बारिश का पानी था लेकिन कागज वाली नाव नहीं
जख्म हृदय पर अनगिन गहरे लेकिन कोई घाव नहीं
यौवन की दहलीज पे चढ़ते ही हम दर्पण भूल गए
सच बोलूं.......
इन हाथों की कई लकीरें खुरच खुरच के बनाई है
छोटी सी पहचान मेरी जो अपने दम पर पाई है
जबसे समझ हुई जीवन की सबसे अनबन भूल गए
सच बोलूं........
जो कुछ था किस्मत में मेरी सब मैंने स्वीकारा है
लेकिन मेरी जिद के आगे कई बार वह हारा है
परपीड़ा के चिंतन में हम अपनी उलझन भूल गए
सच बोलूं......
प्रियंका राय ॐनंदिनी
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