Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

क्यों नहीं हम क्रन्दनों के गाँव चलते हैं ।

क्यों नहीं हम क्रन्दनों के गाँव चलते हैं ।

डॉ रामकृष्ण मिश्र
क्यों नहीं हम क्रन्दनों के गाँव चलते हैं ।
बाँट आएँ उन्हे थोड़ी छाँव चलते हैं।
राजनीतिक हवा में तो नमी कम होती।
देख लेंगे कहाँ हो ठहराँव चलते हैं ।।
धूप ने बेदखल कर दी है अभी साँसे ।
हवा के रुख में करें बदलाव चलते हैं।।
सुना है आकाश से राहत बरसती है।
देख लें हे कहाँ तक है नाव चलते हैं।।
जंगलों में भूत उजले घूमते रहते।
देखना है घाटियों से लगाव चलते हैं।।
कोटरों में वनाली के प्राण वसते हैं।
जलाते हैं कौन यहाँ अलावा चलते है।।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ