जमीन सर्वे और मेरे अनुभव।
जय प्रकाश कुवंर
बिहार में जमीन सर्वे का काम इस साल के अगस्त, २0२४ महीने से शुरू हुआ है। बिहार प्रदेश के प्रायः हर जिले में यह काम जोर शोर से होने जा रहा है। बिहार प्रदेश में पहले इतने जिले नहीं थे, जितने आज हैं। अतः जमीन संबंधित सरकारी अभिलेख , जैसे खतियान वगैरह भी आज के जिलों में बंट गए हैं, और आवश्यकता के अनुसार उपलब्ध कराने चाहिए।
बिहार में पहली बार सन् १८९० से १९२० के बीच कैडस्ट्रल सर्वे हुआ था। कैडस्ट्रल सर्वे का मतलब जमीन का खेसरा या प्लाट निर्धारण करना होता है। यह काम सन् १९०८ में अंग्रेजों के जमाने में हुआ था। उसके बाद सन् १९११ में जमीन का खतियान बना था।
सन् १९०८ , यानि अंग्रजों के जमाने के बाद पुनः कोई दूसरा सर्वे नहीं हुआ था, जो अब सन् २०२४ में, यानि लगभग ११६ वर्षों के बाद स्वतंत्र भारत , या फिर स्वतंत्र बिहार में होने जा रहा है।
इस बिगत ११६ वर्षों में अनेकों किसान परिवारों की तीन से चार पीढ़ियां समाप्त हो चुकी हैं। पहले सर्वे में निर्धारित खेसरा अथवा प्लाट के भी परिवार के बार बार बंटवारा होने के साथ अनेकों टुकड़े हो चुके हैं।
जमीन का मुल जड़ खतियान ही होता है। खतियान से ही साबित किया जा सकता है कि उक्त जमीन पर किसका स्वामित्व है। ऐसे में किसी परिवार के बार बार खंडित होने पर खतियान में तत्काल के स्वामी का नाम अंकित होना लाजमी है, परंतु ऐसा नहीं हो सका है। जमीन का स्वामी किसान रैयत के नाम से जाना जाता है। लेकिन परिवार का बंटवारा होने पर एक ही खेसरा के अनेक रैयत पैदा हो जाते हैं।
जमीन संबंधित पैतृक संपत्ति को हिन्दू लाॅ में इसे दो श्रेणियों में बांटा गया है। पैतृक संपत्ति और स्वअर्जित संपत्ति। पैतृक संपत्ति में चार पीढ़ी पहले तक पुरुषों की वैसी अर्जित संपत्ति आती है, जिसका कभी बंटवारा नहीं हुआ हो। स्वअर्जित संपत्ति वह है जो किसी अन्य रैयत से खरीदा गया हो।
जमीन और रैयत किसानों की बात करें, तो शायद ही ऐसा कोई किसान परिवार होगा जिसमें बेटा और बेटी दोनों न हों। अब परिवार और जमीन बंटवारा के हालात में हर परिवार में स्थिति यह रही है कि किसका अधिकार जमीन पर रहेगा। तो इसका दिशा निर्देश यह था कि सन् २00५ से पहले पैतृक संपत्ति पर सिर्फ बेटों का अधिकार होता था। हालांकि पिता की स्वअर्जित संपत्ति में बेटी का पक्ष कमजोर होता है। पिता अपनी इस संपत्ति को अपनी मर्जी से किसी को भी दे सकता है। यह पिता का कानूनी अधिकार है।
सन् २००५ के बाद संपत्ति विवाद में एक नया मोड़ आया। हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम में सुप्रीम कोर्ट द्वारा २००५ में किये गए संसोधन के अनुसार बेटियों को अपने पिता की संपत्ति में बेटों के बराबर अधिकार प्राप्त है। यह अधिनियम बेटियों को उनके पिता या पैतृक संपत्ति में जन्मसिद्ध अधिकार प्रदान करता है।
सन् २००५ से पहले बेटी के बिबाह होने पर हिन्दू उत्तराधिकार कानून में बेटियां सिर्फ हिन्दू अविभाजित परिवार की सदस्य मानी जाती थीं, यानि संपत्ति में समान उत्तराधिकारी नहीं थीं। बेटी की शादी हो जाने पर उसे हिन्दू अविभाजित परिवार का भी हिस्सा नहीं माना जाता था।
उपरोक्त तथ्यों को देखा जाए तो ऐसा लगता है कि वर्तमान सर्वे में किसानों से कुछ ऐसे दस्तावेज मांगे जा रहे हैं, जिससे उनकी परेशानियां बढ़ रही हैं। आज किसान सर्वे के लिए तरह तरह की समस्या से जुझ रहे हैं।
१. सबसे पहले खतियान की बात करें तो , हर गाँव में छोटे बड़े सब तरह के किसान रैयत हैं, बल्कि जादेतर छोटे ही किसान हैं। ९५ फीसदी किसानों के पास खतियान नहीं है।
२. बंशावली - ज्यादातर लोग इस दुविधा में पड़े हैं कि इसमें बेटा बेटी सबका नाम दर्ज करना है या फिर केवल बेटों का। क्योंकि सन् २००५ के पहले पैतृक संपत्ति पर केवल बेटों का अधिकार होता था। सन् २००५ से पहले जो बेटियां ब्याह दी गई हैं, उन्हें पैतृक संपत्ति में समान अधिकारी नहीं माना जाता है। अगर ऐसा नहीं होता तो, बिहार के हरेक गाँव और हरेक परिवार में एक तरफ बेटा बहू जमीन के मालिक होते तो एक तरफ बेटी दामाद जमीन के मालिक होते। और समस्या बिकराल हो गई होती। पर ऐसा देखने को नहीं मिलता है।
३. जमीन जो बयनामा लिखाया गया है, उसका दाखिल खारिज ( म्यूटेशन) । बहुतायत में ऐसे उदाहरण मिल रहे हैं कि जमीन ६०- ७० साल पहले खरीदा गया है और उसका म्यूटेशन नहीं हुआ है। फिर भी जमीन का लगान रशीद खरिदार के नाम से कट रहा है और वह सरकार को लगान दे रहा है।
४. परिवारिक बंटवारा में कोई न तो कागजात बना है और न कोई गवाह है। आपसी सहमति से परिवार में जमीन का बंटवारा होता चला आया है और सभी अपने हिस्से को जोत बो रहे हैं। कोई विवाद नहीं है। बल्कि विवाद नगन्य है।
५. बहुत सारे जमीन संबंधित कागजात हैं, जो कैथी लिपि में लिखे गए हैं। आज उनका नकल निकालने और हिन्दी अनुवाद करने में समस्या पैदा हो रही है और अत्यंत खर्चीला मामला बन गया है।
६. सरकारी खाता रजिस्टर २ में जो जमीन का विवरण मांगा जा रहा है, वह एक अलग समस्या है। हरेक परिवार की जमीन बंट गई है और आज चौहद्दी अंकित करना समस्या है, क्योंकि नयी पीढ़ी का नाम किसी को समझ नहीं आ रहा है।
७. किसी समस्या के समाधान के लिए अथवा कोई कागज निकालने के लिए ब्लॉक और अंचल कार्यालय में बार बार चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। अभिलेखागार में कागज निकालने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ रही है। बहुत सारे पुराने खतियान नहीं मिल रहे हैं और गायब हैं। इन सारी समस्याओं के चलते लोगों को काफी परेशानी हो रही है और कोई समाधान नहीं दिखता है।
८. सरकार की मंशा सही होते हुए भी कि जमीन का सही स्वामित्व विवरण तैयार किया जाय, जो परेशानियां किसानों और रैयतों के सामने आ रही हैं वह असिमित हैं। जिन रैयतों के पास उनकी पैतृक संपत्ति है, वो तो सही है, परंतु जिन लोगों ने अन अधिकृत रूप से सरकारी संपत्ति पर नाजायज अधिकार जमा रखा है, इस सर्वे में उस जमीन की उगाही सरकारी प्राथमिकता होनी चाहिए। तभी जाकर जमीन सर्वे का उद्देश्य पुरा होगा।
उपरोक्त विचार मेरे अपने अनुभव के आधार पर हैं जो हमने गाँवों और समाज में देखा है, और आशा है कि सरकार कुछ सरल रास्ता निकाल कर सर्वे का काम निबटाने में सफल होगी, ताकि लोग इस समस्या से बाहर निकल सकें।
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