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शंतू

शंतू

अवध किशोर मिश्र 
(1990-2000 का गाँव और शहर)

मेरे दोस्त!
बहुत साल पहले तुम्हारी पाती आई थी
पाती के शब्द अक्षरशः याद हैं-
"शहर के बारे में लिखना मेरे दोस्त!
यहाँ गाँव की हवा बिल्कुल बदल गईहै
अब चौपालों में गोठियां नहीं लगतीं
खेतों की मेड़ों पर..
बंदूककी नाल उगतीहै
क्यारियों में पानी की जगह.
लोहू की धार बहती है


सस्ते उपन्यास और फुटपाथी
सत्य कथा पढ़कर, प्रेम में पड़कर
मनोहर चाचा की बिटिया 'शंतू' परसों भाग गई अपने ममेरे भाई के संग
बिल्कुल बदल गया अपने गाँव का ढंग"


और भी बहुत कुछ लिखा था तुमने
लगे हाथ शहर का हाल पूछा था तुमने
शहर कोअपनी आंखों से परखा है
हर जगह एक जैसा ही मसला है.


खेद है, मैं भी इस मिट्टी में पला हूँ
हर बार 'अपनों ' ही द्वारा छला हूँ
अपराध के लिए यह मिट्टी उपजाऊ है
फैशन की ओट में वनिता बिकाऊ है
आदमी का चरित्र ....
आइसक्रीम का टुकड़ा है
जो जितना गिरा है..
वही उतना बड़ा है


लूट ,हत्या ,ब्लात्कार, ...
यौन कुंठा व्यभिचार..
यह आम आदमी का दर्शन है
नेताओं को गाली देना फैशन है


(एक राज़ की बात बताऊँ मेरे दोस्त? )


हर अनीति के पीछे एक
मर्द की अनीति का हाथ है
गाँव की 'शंतू' तो अपवाद है-
यहाँ अधिकांश 'शंतू'.. गैर मर्द के साथ है.
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