दीपावली का जश्न
दीपावली तो मनाया होगा आपने ,असहायों से भी कभी पूछा क्या ?
दीपावली जश्न भी मनाया होगा ,
बेबसों से भी आपने पूछा है क्या ?
असहायों से भी आपने पूछा होता ,
दीपावली हेतु तेरे ये दीप कहाॅं हैं !
उन निर्धनों से ये आपने पूछा होता ,
दीप जलाने हेतु तेरे तेल कहाॅं हैं !!
सड़ रहे बैंक में तेरे बहुत ये रुपए ,
गरीबों का दीप भी ये जला होता ।
कुछ पैसों से उन्हें सहारा मिलता ,
ग़रीबी उन्हें भी नहीं खला होता ।।
क्या करोगे इतने सारे तुम रुपये ,
इन गरीबों से ही तो तुम लुटे हो ।
फूल रही हैं अब ये साॅंसे तुम्हारी ,
लगता जैसे तेरे दम ही घुटे हों ।।
माफ होता तेरी अनैतिक कमाई ,
उल्टे गरीब तुझे ढेर दुआ देता ।
फलते फूलते उनके ये आशीष से ,
तेरे लिए नहीं कभी बद्दुआ देता ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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