आओ बैठो,प्राण!
डॉ. मेधाव्रत शर्मा,
डी•लिट•करतलगत क्षण को निचोड़कर जी भर पूरा पी लो,
प्राण-देवता के प्रांगण में दीपक बन कर जी लो ;
शैल-वक्ष से निकले सुधा-प्रपात!
आओ बैठो ,प्राण!
आदिकमठ के वज्रपृष्ठ पर सकल भुवन-अवलम्बन ,
निश्चल निष्ठा पर है निर्भर निःश्रेयस का साधन ;
तन -दीवट में जीवट बने अलात!
आओ बैठो, प्राण!
जहाँ दरिन्देपन में पागल घूम रहे दुःशासन,
दुर्गा-पूजा देवी का है केवल क्रूर विडम्बन;
मातृजाति में बगला हो संजात!
आओ बैठो,प्राण!
अपने जल्लादों को भी दे गया असीस मसीहा,
लोक-त्राण ही एकमात्र थी जिसकी पावन ईहा;
गूढ़ पहेली,उत्तर है अज्ञात!
आओ बैठो, प्राण!
घाव रहे मिलते अपनों से,रिश्ते सब जंजाल,
रहे पोंछते सदा पसीने,सूखा कभी न भाल ;
शत्रु-मित्र,भाई-बन्दे उत्पात!
आओ बैठो, प्राण!
परम आत्मगुरु महाभिषक् तुम ऐसी औषध दे दो;
आँच न पहुँचा सके तनिक,धू-धू जग-पंचानल जो;
सर्वमंगला करे कृपा-संपात!
आओ बैठो,प्राण!
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