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दुष्कर्मों का फल

दुष्कर्मों का फल

बदह‌वास चेहरा, निस्तेज आंखें व विखरे बाल,
यही शब्द चित्र है उस बदहाल व निरीह बेवा का । 
 जिसकी जिंदगी एक बोझ -सी बन गई है,
बदहाल - सी जिंदगी बस यूं ही कट रही है।
उसकी फटेहाल जिंदगी वीरान- सी हो गई है.
अपनों के लिए तो वह अंजान-सी हो गई है।
समाज में उसकी हैसियत नगण्य- सी हो गई है ,
अपनों की नजरें भी जायदाद पर टिक गई है।
पूर्वजन्म के दुष्कर्मों का ही उसे फल मिला है
फिर क्यों उसे ईश्वर से इस बात का गिला है।

सुरेन्द्र कुमार रंजन
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