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शून्य से शिखर की यात्रा

शून्य से शिखर की यात्रा

यह कथन कि, "जीवन में अपना व्यक्तित्व शून्य रखिए ताकि कोई उसमें कुछ भी न घटा सके,परंतु जिसके साथ आप खड़े हो जाएं उसकी कीमत दस गुना बढ़ा दें," गहरा दार्शनिक और व्यावहारिक दोनों है। यह हमें जीवन के एक ऐसे आयाम की ओर ले जाता है, जहां हम अपनी पहचान को परिभाषित करते हुए भी, दूसरों के लिए एक मजबूत सहारा बन सकते हैं।

शून्य का महत्व :

जब हम अपना व्यक्तित्व 'शून्य' की अवस्था में रखते हैं, तो इसका मतलब यह नहीं है कि हम अपनी पहचान खो देते हैं। बल्कि इसका अर्थ है कि हम अपने अहंकार और अनावश्यक अपेक्षाओं को त्याग देते हैं। इस तरह, हम किसी भी बाहरी प्रभाव से अप्रभावित रहते हैं और अपनी शांति और स्थिरता बनाए रखते हैं। यह एक ऐसा खाली कैनवास होता है, जिस पर हम अपनी इच्छानुसार चित्रकारी कर सकते हैं।

दूसरों को बढ़ावा देना :

जब हम अपना व्यक्तित्व शून्य रखते हैं, तो हम दूसरों को बिना किसी स्वार्थ के समर्थन देने में सक्षम होते हैं। हम उनकी कमजोरियों को समझते हैं और उनकी ताकतों को बढ़ावा देते हैं। इस तरह, हम न केवल दूसरों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाते हैं बल्कि खुद भी संतुष्टि और खुशी का अनुभव करते हैं।

गुणवत्ता का गुणनफल :

यह कथन हमें यह भी बताता है कि जब हम दूसरों के साथ मिलकर काम करते हैं, तो हमारी क्षमता कई गुना बढ़ जाती है। एक टीम के रूप में काम करने से हम न केवल अपने लक्ष्यों को प्राप्त करते हैं बल्कि नए रिश्ते भी बनाते हैं।

यह कथन हमें सिखाता है कि जीवन में सफलता पाने के लिए हमें न केवल अपने बारे में सोचना चाहिए बल्कि दूसरों के बारे में भी सोचना चाहिए। जब हम अपना अहंकार छोड़ देते हैं और दूसरों की मदद करते हैं, तो हम न केवल दुनिया को एक बेहतर जगह बनाते हैं बल्कि खुद भी एक बेहतर इंसान बन जाते हैं।

. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार)

पंकज शर्मा
(कमल सनातनी)
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