उजाले के दीपक जगाने चला हूं
जयराम जयअंधेरे दिलों के मिटाने चला हूं
उजाले के दीपक जगाने चला हूं
जो सूरज ने बांटे हैं कुछ को उजाले
मैं समता का सूरज उगाने चला हूं
जिन्हें हाशिए पर ही रख्खा गया है
उन्हें सामने सबके लाने चला हूं
बतासे ही मिथ्या बाँटे हैं उस ने
मैं तुमको यही तो सुझाने चला हूं
जो बंचित रहे अपने अधिकार से हैं
उन्हें उनका हिस्सा दिलाने चला हूं
ये बांटेंगे हमको ये काटेंगे हमको
ये शातिर बहुत हैं बताने चला हूं
जो जिन्दा हो 'जय' तो मिरे साथ आओ
मैं नफरत की अर्थी उठाने चला हूं
*
~जयराम जय
'पर्णिका'बी-11/1,कृष्ण विहार,आवास विकास,कल्याणपुर,कानपुर-208017(उ.प्र.)
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