रावण भक्ति के मिथ्या प्रचार-

अरुण कुमार उपाध्याय
रावण के वेदज्ञ होने का उल्लेख किसी भी रामायण में नहीं है। भगवान् श्रीराम तथा उनके सभी भाइयों ने वसिष्ठ से वेद पढ़ा था। उनके समय वाल्मीकि ही २४वें व्यास थे। विष्णु पुराण, अध्याय (३/३)-द्वापरे प्रथमे व्यस्तः स्वयं वेदः स्वयम्भुवा॥११॥
ऋक्षोऽभूद् भार्गवस्तस्माद् वाल्मीकिः योऽभिधीयते।तस्माद् अस्मत् पिता शक्तिः व्यासः तस्मात् अहं (पराशर) मुने॥१८॥
जातुकर्णो ऽभवन् मत्तः कृष्णद्वैपायनः ततः। अष्टाविंशतिरित्येते वेदव्यासाः पुरातनाः॥१९॥
वाल्मीकि ने लव-कुश को वेद तथा रामकथा पढ़ाई थी-
स तु मेधाविनौ दृष्ट्वा वेदेषु परिनिष्ठितौ। वेदोपबृंहणार्थाय तावग्राहत प्रभुः॥ (रामायण, १/४/६)
रावण के बदले हनुमान् के वेदज्ञ होने का उल्लेख स्वयं श्रीराम ने किया है-
नानृग्वेद विनीतस्य ना यजुर्वेद धारिणः।
ना सामवेद विदुषः शक्यमेव प्रभाषितुम्॥२८॥
नूनं व्याकरणं कृत्स्नं अनेन बहुधा श्रुतम्।
बहु व्याहरतानेन न किञ्चित् अपशब्दितम्॥२९॥
(रामायण, किष्किन्धा काण्ड, ३/२८-२९)
रामायण, युद्धकाण्ड, सर्ग १११ में ब्रह्मास्त्र द्वारा रावण वध का वर्णन है। वध के बाद वह जीवित नहीं हुआ था जिससे लक्ष्मण कोई शिक्षा ले सकते थे, जिसका प्रचार होता है।
रावण वैज्ञानिक भी नहीं था। नल-नॊल द्वारा समुद्र पर सेतु निर्माण इतना कठिन था कि रावण को विश्वास नहीं हुआ कि यह सम्भव है। पुष्पक विमान भी उसका बनाया हुआ नहीं था, इसे कुबेर से चोरी किया था। रावण वध के बाद श्री राम ने अयोध्या पहुंचने के बाद इसे कुबेर को लौटा दिया (रामायण, युद्ध काण्ड, सर्ग १३०)
रामेश्वरम में भी शिवलिंग स्थापना के लिए रावण को निमन्त्रण देने की बात भी कहीं नहीं लिखी है। झूठी कहानी रचने वालों ने सोचा कि तमिल की कम्बन् रामायण उत्तर भारत में किसी ने नहीं देखी होगी, अतः उसको मिथ्या उद्धृत करते हैं। इसका हिन्दी अनुवाद बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् से प्रकाशित हुआ था जिसकी प्रति नेट पर उपलब्ध है। तमिल में राम के शिवभक्ति की कथा प्रचलित है। शिवलिंग पर १०० कमल चढ़ाना था, १ कमल कम था तो उसके बदले राम अपनी आंख निकालने वाले थे। अतः उनको वीजिनाथन कहा जाता है। वीजि - आंख (अंग्रेजी में विजन, vision) रावण व्यक्तिगत नाम नहीं था। मान्धाता, अनरण्य तथा सहस्रबाहु के समय भी रावण थे। सम्मान के लिए दक्षिण भारत में राव उपाधि है। काशी क्षेत्र में रवा (आप) कहते हैं। इसका शाब्दिक अर्थ है कि जिस मनुष्य में यज्ञ रूपी वृषभ रव कर रहा है, उसमें महादेव का वास है।
त्रिधा बद्धो वृषभो रोरवीति, महोदेवो मर्त्यां आविवेश॥ (ऋक् ४/५८/३)सबसे पहले पुरु को रवा कहा गया क्यों कि उन्होंने प्रयाग में ३ प्रकार की यज्ञ संस्था स्थापित की थी (विष्णु पुराण, ४/७/९१)। तमिल में राव का रावण हो जाता है, जैसे राम का रामन्, कृष्ण का कृष्णन्। रावण पर रामेश्वरम् से आक्रमण हुआ था, अतः तमिल में रावण विरोध के कारण राव उपाधि समाप्त हो गयी। उसके विपरीत वहां रावण संस्कृति होने का प्रचार हो रहा है। प्रचार करने वाले सभी का नाम राम पर ही है-रामास्वामी, रामचन्द्रन आदि।
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