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दुष्ट मानव

दुष्ट मानव

ऐ दुष्ट मानव तू खुदा को कब मानेगा,
तू उसकी पाक रहमत को कब पहचानेगा।
खुदा ने खास मकसद से भेजा है जमीं पर,
पर क्यों अपनी कब्र खुद खोद रहा है जमीं पर।
तुम्हारा जीवन तो परोपकार के लिए बना है,
फिर तुम क्यों अपराध करने पर तुला है।
चंद रूपयों की खातिर तू गद्दार बन गया है,
अपने ही लोगों का तू कातिल बन गया है।
ऐ बंदे इस बात को तू क्यों भूल रहा है ,
कि भगवान के घर देर है पर अंधेर नहीं।
अब भी वक्त है तू संभल जा जरा,
वरना तेरी लाश रह जाएगा यूं ही धरा।
तू चील- कौवों का शिकार बन जाएगा,
तेरा सब कुछ यहीं धरा का धरा रह जाएगा।

सुरेन्द्र कुमार रंजन
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