अज्ञान का अंधकार मिटाऍं
अंतर्मन का यह दीप जलाऍं ,अंतर्मन को ये मार्ग दिखाऍं ।
अंतर्मन को दें हम उजाला ,
अज्ञान का अंधकार मिटाऍं ।।
अंतर्मन को ये मार्ग मिलेगा ,
हृदय हमारा ये खूब खिलेगा ।
गुंजार करते आऍंगे भॅंवरे ,
दीप हमारा कभी न बुझेगा ।।
आओ सत्य मार्ग अपनाऍं ,
कर्म मार्ग पे ही चलें चलाऍं ।
निष्ठा व सभ्यता अपनाकर ,
भटके को हम मार्ग दिखाऍं ।।
आना जाना तो लगा रहेगा ,
कर्म हमारा जमाना कहेगा ।
सबके उर ये दीप प्रज्वलित ,
धरा निरंतर संस्कार बहेगा ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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