सूर्योपासना के नियम
आनंद हठिला पादरली (मुंबई)
भगवान् सूर्य परमात्मा के ही प्रत्यक्ष स्वरूप है। ये आरोग्य के अधिष्ठातृ देवता है। मत्स्यपुराण (67971) का वचन है कि 'आरोग्यं भास्करादिच्छेत्' अर्थात् आरोग्य की कामना भगवान सूर्य से करनी चाहिए, क्योंकि इनकी उपासना करने से मनुष्य नीरोग रहता है। वेद के कथनानुसार परमात्मा की आँखों से सूर्य की उत्पत्ति मानी जाती है-चक्षोः सूर्योऽजायत । श्रीमद्भगवतगीता के कथनानुसार ये भगवान् की आँखें है-शशिसूर्यनेत्रम्। (11/16)
श्रीरामचरित मानस में भी कहा है-नयन दिवाकर कच घन माला (6/15/3) आँखों के सम्पूर्ण रोग सूर्य की उपासना से ठीक हो जाते हैं। भगवान सूर्य में जो प्रभा है, वह परमात्मा की ही प्रभा है वह परमात्मा की ही विभूति है प्रभास्मि शशिसूर्ययोः
(गीता 718)
यदादित्यगतं तेजो जगद्भासयतेऽखिलम् । यच्चन्द्रमसि यच्चाग्नौ तत्तेजो विद्धि मामकम् ।।
(गीता 15/12)
भगवान् कहते हैं- 'जो सूर्यगत तेज समस्त जगत् को प्रकाशित करता है तथा चन्द्रमा एवं अग्नि में है, उस तेज को तू मेरा ही तेज जान इससे सिद्ध होता है कि परमात्मा और सूर्य- ये दोनों अभिन्न हैं। सूर्य की उपासना करने वाला परमात्मा की ही उपासना करता है। अतः नियमपूर्वक सूर्योपासना करना प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है। ऐसा करने से जीवन में अनेक लाभ होते हैं। आयु, विद्या, बुद्धि, बल, तेज और मुक्ति तक की प्राप्ति सुलभ हो जाती है। इसमें संदेह नहीं करना चाहिए। सूर्योपासना में निम्न नियमों का पालन करना परम आवश्यक है।
1. प्रतिदिन सूर्योदय के पूर्व ही शय्या त्यागकर शौच स्नान करना चाहिये।
2. स्नानोपरान्त श्री सूर्य भगवान् को अर्घ्य देकर प्रणाम करें।
3. सन्ध्या-समय भी अर्घ्य देकर प्रणाम करना चाहिये।
4. प्रतिदिन सूर्य के 21 नाम, 108 नाम या 12 नाम से युक्त स्तोत्र का पाठ करें। सूर्यसहस्र नाम का पाठ भी महान लाभकारक है।
5. आदित्य हृदय का पाठ प्रतिदिन करें।
6. नेत्र रोग से बचने एवं अंधापन से रक्षा के लिये नेत्रोपनिषद (चाक्षुषोपनिषद्) का पाठ करके प्रतिदिन भगवान सूर्य को प्रणाम करें।
7. रविवार को तेल, नमक और अदरख का सेवन नहीं करें और न किसी को करायें।
रविवार को एक ही बार भोजन करें। हविष्यान्न खाकर रहे। ब्रह्मचर्यव्रत का पालन करें। उपासक स्मरण रखें कि भगवान श्रीराम ने आदित्य हृदय का पाठ करके ही रावण पर विजय पायी थी। धर्मराज युधिष्ठिर ने सूर्य के एक सौ आठ नामों का जप करके ही अक्षयपात्र प्राप्त किया था। समर्थ श्रीरामदास जी भगवान सूर्य को प्रतिदिन एक सौ आठ बार साष्टांग प्रणाम करते थे। संत श्रीतुलसीदास जी ने सूर्य का स्तवन किया था। इसलिये सूर्योपासना सबके लिये लाभप्रद है।
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