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जगदम्बा के श्रीचरणों में

जगदम्बा के श्रीचरणों में

डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•

(पूर्व यू.प्रोफेसर)
माँ!तू ही कुण्डलिनी बन प्रतिजीव-देह में विलसित,
जन-जन का तुझपर ही तो आधारित उन्मन जीवन।
देह-कन्द त्रैपुर त्रिकोण में ज्योतिर्लिंग स्वयम्भू ,
जिससे लिपटी तडिल्लता-सी करती है गाढ शयन ।
साढ़े तीन कुण्डलों से जो अद्भुत विग्रह-मण्डन ,
तेरा यही रूप जगदम्बे! प्राण-प्रणव का केतन ।
तू जागे, हो सहस्रार परशम्भु-धाम-पथ उज्ज्वल,
तेरी निद्रा मोह-तमिस्रा में मानव का मज्जन ।
तू ही परम अमोघ कुंचिका योगिजनों के कर में,
जिससे करते सहज सिद्ध वे मोक्ष-द्वार-उद्घाटन ।
महापद्म-वन में विराज चक्रातिचक्र कर भेदन ,
महाशम्भुसंघट्टभूत मन्त्रोद्भव सौरत-कूजन ।
प्रत्यावर्तन-क्रम में चरण-युगल-निर्झरित सुधा से
खिलते कुलपथ-कमल,सृष्टि का होता है आप्यायन।
रक्ता त्रिपुरसुन्दरी, तू ही श्यामा दक्षिणकाली ,
महायोगियों को सुसिद्ध जिसका चाक्षुष संवेदन।
मुण्डमालिनी वर्णमालिनी तेरा कौतुक अद्भुत ,
कण-कण विस्मयपूर्ण सृष्टि का तेरा ही आभूषण।
ज्योतिर्मय, तू मन्त्रमालिका कामकला-विद्या है,
योगिजनों के हृदय-कमल में तेरा अविरत नर्त्तन।
जाग जाग हे ईश्वरि,उर का अंधतमस मिट जाए,
तेरी ही करुणा से संभव आत्मस्वरूप- प्रकाशन।
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