कर न सका हित किसी का ,
अपनी ही ये टीस समझकर ।पी न सका मैं अमृत भी यह ,
जहरीला सा विष समझकर ।।
उसका टीस ही था मेरा हर्ष ,
तब निकलता सज धजकर ।
पहुॅंचता था मैं हालचाल लेने ,
जब चेहरे पर बारह बजकर ।।
उसका सुख मेरे मन का टीस ,
आग लगाता काम तजकर ।
मुॅंह में राम बगल लेकर छुरी ,
रास्ते में ही श्रीराम भजकर ।।
था तो भोला भाला ये इंसान ,
मैं नीति में निकला मजकर ।
बहाना बना शीघ्र निकलता ,
सोची हुई ये नीति कजकर ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com