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सामा चकेवा लोक पर्व|

सामा चकेवा लोक पर्व|

डॉ अंजना झा
सामा चकेवा लोक पर्व बिहार के मिथिला में पौराणिक काल से मनाया जा रहा है। भाई बहन के अपार स्नेह का प्रतीक यह पर्व पूरे देश में लोकप्रिय है।इस पर्व के गीत मिथिला के लोक गीत की श्रेणी में अपनी माधुर्यता के साथ प्रतिष्ठित है, इस पर बेहद सुन्दर भंगिमाओं द्वारा लोक नृत्य भी परम्परागत रूप से किया जाता है। छठ पर्व के पारण के दिन से बहनें मिट्टी से सामा,चकेवा, वृंदावन, चुगला,सतभैया,पेटी,पेटार इत्यादि बनाती हैं । इन्हें धूप में सुखाकर रंगों से सजाती है फिर बांस की डलिया में सजाकर रखती हैं । इस सामा चकेवा त्योहार की शुरुआत कार्तिक शुक्ल पक्ष की सप्तमी से शुरू होकर कार्तिक पूर्णिमा की रात तक चलता है। बहनें बांस की डलिया को सिर पर रखकर चांदनी रात में गीत गाते हुए गलियों में सहेलियों संग घुमती है फिर आंगन में बैठकर खेलती हैं और अपने भाई की सलामती की प्रार्थना गीत गाकर करती हैं । इसमें बालिकाएं भगवती गीत, ब्राह्मण गीत और अंत में बेटी विदाई का समदाउन गाती हैं। कार्तिक पूर्णिमा को बहनें सामा चकेवा को टोकरी में सजाकर नदी तालाबों के घाटों तक पहुंचती हैं । पूर्णिमा की रात्रि में इन प्रतिमाओं को विसर्जित किया जाता है। मिट्टी के हंडीनुमा के सेखारी में चूड़ा, मूढ़ी एवं मिठाई देने की भी परम्परा है । बहनें धान की नई फ़सल के चूड़े बनाकर अपने भाई को दही चूड़ा खिलाती है।
मिथिला का प्रसिद्ध लोक पर्व सामा चकेवा त्योहार का उल्लेख पद्म पुराण में भी है। इस त्योहार की अपनी पौराणिक कथा है। भगवान श्री कृष्ण और जाम्बवती की संतान श्यामा यानी सामा (पुत्री )और पुत्र चकेवा थें। यह पर्व भाई बहन के बीच स्नेह, प्यार और अनुराग को दर्शाता है। सामा जो भगवान श्री कृष्ण की पुत्री है वृंदावन के जंगल में हर दिन खेलने जाती थी उसे प्रकृति से बेहद लगाव था । चुरक जो श्री कृष्ण के मंत्री थे वो हर दिन श्यामा के खिलाफ श्री कृष्ण के कान भरते थे।एक दिन चुरक यानी चुगला ने श्री कृष्ण से सामा की झुठी शिकायत कर दी कि वो वृंदावन में ऋषि से मिलने जाती है । यह बात सुनते ही क्रोधित श्री कृष्ण ने अपनी बेटी को मैना बनने का श्राप दे दिया । श्यामा की शादी चक्रवाक ऋषि से हुई थी।अपनी पत्नी को इस रूप में देखकर चक्रवाक को बहुत दुख हुआ और उन्होंने शंकर भगवान से प्रार्थना कर खुद को भी पंछी रुप में परिवर्तित कर लिया। दोनों पति-पत्नी चकवा चकवी नाम से वृंदावन में रहने लगे। चुरक इन दोनों को मारने हेतु जंगल में आग लगा देता है किन्तु बारिश होने के कारण आग बुझ जाती है और दोनों बच जाते हैं ।श्यामा का भाई जब गुरु कुल से शिक्षा प्राप्त कर वापस अपने घर आते हैं तो वो अपनी प्यारी बहन को ढुंढते हैं तब चकेवा को इस बात की जानकारी मिलती है कि पिताजी ने बहन सामा को चुरक के झुठी शिकायत पर श्राप से मैना बना दिया है। चकेवा जानते थे कि श्री कृष्ण के श्राप का प्रभाव कोई भी उनके अलावा खत्म नहीं कर सकता है। अतः वो श्री कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या करने चलें गये।उसके घोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान श्री कृष्ण ने उससे वरदान मांगने को कहा। चकेवा ने अपनी बहन को पहले जैसा करने हेतु श्री कृष्ण से अनुरोध किया।श्री कृष्ण ने इस शर्त पर अनुरोध स्वीकार किया कि श्यामा कार्तिक शुक्ल पक्ष की अष्टमी को अपने भाई से मिलने आएंगी पर पूर्णिमा के रात्रि में उन्हें विदा करना होगा । भाई का अपनी बहन के लिए यह प्यार अद्भुत है और सामा ने भी अपने भाई के दिर्घायु होने के लिए ईश्वर से प्रार्थना की। उसी कथा की याद में भाई बहन के पवित्र रिश्ते को छठ पर्व के आठवें दिन से मनाया जाने लगा। यह सात दिन तक चलने वाला त्योहार है,और पूर्णिमा को समाप्त होता है।भाई बहन के प्रेम का त्योहार सामा चकेवा बिहार के मिथिला में धूम धाम से मनाया जाता है। इस पर्व में चुगले की प्रतिमा बनाकर उसकी चोटी में आग लगा कर उसे जूत से पीटने की भी परम्परा है।


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