समय चक्र : कल की चिंता, बीते का भय
भविष्य की चिंता अतीत का भय,जो साथ है तेरे वही है समय।
तु कल के लिए क्यों रोता है,
आँसू में आज को खोता है।
ये वक़्त भी बदल जाएगा,
कल नया सवेरा लाएगा।
क्यों रोता है क्या खोया है,
वही काटेगा जो बोया है।
कितना सोचता है मन बेचैन,
बीते पलों के लिए फिर से लौटने।
कल की चिंता सताती रहती है,
मानो जीवन का कोई मकसद न हो।
नहीं समझता ये दिल बेचारा,
वर्तमान ही जीवन का आधार।
जो बीत गया सो बीत गया,
कल क्या होगा कौन जानता है।
फिर भी क्यों नहीं समझता,
ये दिल क्यों इतना डरता है।
चलो आज को जी लें खुलकर,
कल के लिए क्यों इतना परेशान।
ये समय का चक्र है चलता रहता है,
नया दिन लाता है, नया सवेरा।
जो बीत गया सो बीत गया,
कल नया अध्याय लिखेगा।
. स्वरचित, मौलिक एवं पूर्व प्रकाशित
पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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