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बटोहिया' ने राष्ट्रीय-बोध कराया और 'फिरंगिया' ने क्रांति को ज्वाला दी:-डा अनिल सुलभ

बटोहिया' ने राष्ट्रीय-बोध कराया और 'फिरंगिया' ने क्रांति को ज्वाला दी:-डा अनिल सुलभ

  • साहित्य सम्मेलन ने बाबू रघुवीर नारायण और प्रो मनोरंजन प्रसाद सिन्हा के साथ महाकवि
  • पण्डित मोहनलाल महतो 'वियोगी' को किया श्रद्धापूर्वक स्मरण, दी काव्यांजलि ।

पटना, ४ नवम्बर। भारत के संपूर्ण आंतरिक सौंदर्य और आध्यात्मिक-ऊर्जा से परिचय कराने वाला, अमर कवि बाबू रघुवीर नारायण का गीत 'बटोहिया' ने संपूर्ण जगत को भारतीय-दिव्यता से परिचय कराया ही, भारत को उसका 'राष्ट्रीय-बोध' भी कराया। वहीं 'बटोहिया' के तर्ज़ पर ही लिखा गया प्राचार्य मनोरंजन प्रसाद सिन्हा का अमर गीत 'फिरंगिया' ने राष्ट्रीय-आंदोलन में 'क्रांति को ज्वाला' दी।
यह बातें सोमवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, आयोजित जयंती-समारोह और कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता कर्ते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। सम्मेलन सभागार में, राष्ट्रीय-चेतना के इन दोनों अमर-गीतों के शब्द-कार बाबू रघुवीर नारायण और प्राचार्य मनोरंजन प्रसाद सिन्हा के साथ सम्मेलन के अध्यक्ष रहे महकवि पण्डित मोहनलाल महतो 'वियोगी' की जयन्ती मनायी गयी और उन्हें श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हुए, काव्यांजलि दी गयी। डा सुलभ ने कहा कि, एक भी महान और लोकप्रिय रचना किसी व्यक्ति को साहित्य-संसार में अमर कर सकती है, 'बटोहिया गीत' और बाबू रघुवीर नारायण इसके उज्ज्वल उदाहरण हैं। "सुंदर सुभूमि भैया भारत के देसबा से मोरे प्राण बसे हिम खोह रे बटोहिया" जैसी प्राण-प्रवाही और मर्म-स्पर्शी लिखने वाले बाबू रघुवीर नारायण भोजपुरी और हिन्दी के एक महान कवि ही नहीं एक वलिदानी देश-भक्त और स्वतंत्रता सेनानी भी थे।
डा सुलभ ने कहा कि 'बटोहिया' की तरह 'फिरंगिया' भी स्वतंत्रता सेनानियों की जिह्वा पर रहा। यह गीत भारतीयों पर अंग्रेजों के अत्याचार की मार्मिक कहानी प्रस्तुत करता है, जिसे सुना-सुनाकर क्रांति की ज्वाला भड़काई जाती थी।
महाकवि वियोगी को स्मरण करते हुए डा सुलभ ने कहा कि वियोगी जी वैदिक-साहित्य के गहरे अध्येता थे। इसीलिए उनके काव्य-साहित्य में प्राच्य-साहित्य का सुंदर आख्यान मिलता है। वे १९५७ में मुंगेर में आहूत हुए, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के २८वें महाधिवेशन के सभापति चुने गए थे। हिन्दी भाषा और साहित्य के साथ साहित्य सम्मेलन को बल देने में वियोगी जी अग्र-पांक्तेय थे। वे वर्षों तक गया जिला हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष रहे।
इसके पूर्व अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने 'बटोहिया-गीत' का सस्वर पाठ कर बाबू रघुवीर नारायण को भावांजलि दी। बाबू रघुवीर नारायण के पौत्र प्रताप नारायण ने अपना उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि प्रबुद्ध लोगों के बीच आज भी यह चर्चा का विषय है कि रघुवीर बाबू एक बड़े कवि थे या एक संत। वे एक अत्यंत सरल और निश्छल व्यक्ति थे। सुप्तावस्था में उनके ललाट से 'राम-राम' की ध्वनि आती थी। 'बटोहिया-गीत' की लोकप्रियता इतनी थी कि यह भारत की सीमाओं से पार जाकर मौरिशस, सूरीनाम, टोबैको आदि देशों में भी गायी सुनायी जाती थी। समुद्री जहाज़ से जाने वाले यात्री इस गीत को गा-गा कर अपना समय व्यतीत करते थे। वरिष्ठ साहित्यकार डा रत्नेश्वर सिंह तथा सम्मेलन के अर्थ मंत्री प्रो सुशील कुमार झा ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र की वाणी-वंदना से हुआ। वरिष्ठ गीतकार आचार्य विजय गुंजन, शायर रमेश कँवल, प्रो सुनील कुमार उपाध्याय, कुमार अनुपम, डा शालिनी पाण्डेय, जय प्रकाश पुजारी, ओम् प्रकाश पाण्डेय, ई अशोक कुमार, रौली कुमारी, सुनीता रंजन, अजीत कुमार भारती आदि कवियों और कवयित्रियों ने अपने प्रभावशाली काव्य-पाठ से कवि-सम्मेलन को रसपूर्ण बनाया। मंच का संचालन कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्णरंजन सिंह ने किया। वरिष्ठ समाजसेवी राजनन्दन प्रसाद, पुरुषोत्तम मिश्र, दुःख दमन सिंह, अभिषेक कुमार कुमार, मनोज कुमार सिन्हा, कुमारी मेनका, डौली कुमारी आदि प्रबुद्धजन समारोह में उपस्थित थे।
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