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नीमन शरीर में रउरा , बाउर बिचार बा।

नीमन शरीर में रउरा , बाउर बिचार बा।

झूठ सांच बोली, खराब व्यवहार बा।।
मुंह बंद रहला से , दिखाई ना परत बा।
मुंह खोलतेहीं बात , आग लेखा जरत बा।।
अइसे त पटरी ना केहू से खाई।
केहू लगे बैठी ना, दिही बिलगाई।।
दिया बाती जलेला, बाकिर सबके अंजोर देला।
एही से सब कोई , ओकरा आस पास रहेला।।
चमड़ी केहू देखे ना, व्यवहार सबे देखे ला।
जलते दिया के भी, सब कोई निरेखेला ।।
अइसन कुछ करीं जे, सब कोई नीमन कहे।
भेदभाव छोड़ सबे, रउरा आस पास रहे।।
घर ओ समाज में, आज एकरे दरकार बा।
ना त, सबका के बांटे खातिर सबे तैयार बा।। 
 जय प्रकाश कुवंर
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