बेटी की याद
बेटी की याद दिलसे निकलती ही नही।जिस दिन से ब्याह किया हम लोगों तेरा।
उस दिन से ही घर सुना-सुना हो गया मेरा।
कितना और तुम मुझे रुलाओगें पापाजी,
रुलाओगें पापाजी।
मैं भी कहाँ भूल पाई हूँ तुम्हें।।
जिस रोज घर में आई थी लक्ष्मी बनकर।
घर द्वार और आंगन तब खिल उठा था।
तेरी किलकारीयों से गूंज उठा था तब घर।
वो याद मेरे दिलसे बेटी निकलती ही नहीं,
निकलती ही नहीं।
बस याद तेरी आते रहती है।।
अब हाल मेरा बेटी बहुत हो गया बुरा।
तेरी माँ के जाने से हो गया हूँ अकेला।
बेटा और बहू तो विदेश में रहने लगे है।
बस बातचीत उनसे होती है फोन पे,
होती है फोन पे।।
मैं अब चार दिवारी में बंद होकर रह गया।।
बस या ही अब मेरे साथ रहती है।
सुखदुख के पल को मैं याद करता हूँ।
तेरी कमी मुझे सबसे ज्यादा खलती है।
दफ्तर से घर आते ही सुनता था मैं तेरी,
सुनता था मैं तेरी।
अब याद बहुत आती हो बेटी तुम।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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