यथार्थ
मन लक्ष्य से पीछे हट,विपरीत दिशा में खींचे।
तो पुकार अंतर्मन की सुन
सोचो, गिरो न नीचे।।
सत्य, न्याय, निष्ठा के पथ से,
विचलित कभी न होना।
जन्मभूमि यह है तेरी,
पथ-कंटक कभी न बोना।।
आशा बीच निराशा मन की
जीवन में जब आए ।
विश्वास लक्ष्य में रहे,
पग आगे बढ़ते जाए।।
परिस्थिति कर दे ना विचलित,
नए स्वप्न में नित खोना।
उपलब्धियों पर दंभ हुआ तो,
समझो जीवन में है रोना।।
सहज सरस और सरल भाव से,
परहित में रत नित रहना।
मानवता का धर्म यही,
कहता "विवेक" न पीछे मुड़ना।।
--डॉ. विवेकानंद मिश्र
डॉक्टर विवेकानंद पथ गोल बगीचा, गया
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