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कहां मिलूं मैं ,कहां मिलोगी

कहां मिलूं मैं ,कहां मिलोगी

ज्योतींद्र मिश्र
मिलकर कितनी दूर चलोगी
उमर बढ़ गई अंधियारे की
कितनी कितनी देर जलोगी
यह टीस नहीं सोने देती है
मरहम कितनी देर मलोगी
कहां कहां खुद को बांटोगी
खुद को कितनी देर छलोगी
बदल बदल जाता है मौसम
जबरन कितनी देर खिलोगी 
 ज्योतींद्र मिश्र
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